कानून ताक पर, ज़िंदगियां खतरे में—प्रशासनिक चुप्पी पर उठे सवाल
न्यू सहारा, नोबेल, अर्पण जैसे निजी अस्पतालों पर नियम तोड़ने और मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ का आरोप; प्रिया सिंह की शिकायत से हड़कंप, क्या अब जागेगा प्रशासन?
प्राइम भारत न्यूज
न्यूज डेस्क _ मोहम्मद अहमद
बाराबंकी। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम बृजेश पाठक की कथित सख्ती के बीच बाराबंकी के कई निजी अस्पताल नियम-कानून को ताक पर रखकर मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। इस गंभीर मुद्दे को समाज सेविका प्रिया सिंह ने साहस के साथ उजागर किया है। उन्होंने जिले के कई अस्पतालों—जैसे न्यू सहारा, नोबेल, अर्पण, सहयोग, और ग्लोब हॉस्पिटल—के खिलाफ मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को विस्तृत शिकायत देकर प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया है।प्रिया सिंह की शिकायत में इन अस्पतालों पर कई कानूनों के उल्लंघन का आरोप है, जिनमें दिव्यांगजन अधिनियम 2016, बायोमेडिकल वेस्ट नियम 2016, PC-PNDT अधिनियम 1994, राष्ट्रीय भवन संहिता 2016, क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010, पर्यावरण अधिनियम 1986, और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 शामिल हैं। इन अस्पतालों में रैंप का अभाव, बायोमेडिकल कचरे का खुले में निस्तारण, PC-PNDT प्रमाणपत्र की कमी, फायर एनओसी न होना, मानकविहीन कमरे-बेड, पार्किंग की अनुपस्थिति, अप्रशिक्षित स्टाफ, प्रदूषण लाइसेंस की कमी, और अवैध दवा दुकानों का संचालन जैसे गंभीर लापरवाही के मामले सामने आए हैं। ये अस्पताल बीमा धारकों से मनमानी फीस वसूल रहे हैं, जिसके चलते मातृ-शिशु मृत्यु दर और संक्रामक रोगों में इजाफा हो रहा है।पिछले साल फतेहपुर के एक निजी अस्पताल में एक गर्भवती महिला की मौत की घटना ने इन अस्पतालों की लापरवाही को सुर्खियों में लाया था। पहले इन अस्पतालों को निलंबित डिप्टी सीएमओ डॉ. राजीव दीक्षित का संरक्षण प्राप्त था, जिन्हें मार्च 2025 में डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने रिश्वतखोरी के एक मामले में निलंबित किया था। दीक्षित के निलंबन के बाद भी इन अस्पतालों का बेरोकटोक संचालन जारी है, जिससे प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।प्रिया सिंह ने अपनी शिकायत में मांग की है कि इन अस्पतालों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई हो, जिसमें 48 घंटे में संचालन पर रोक, प्रत्येक अस्पताल पर ₹15 लाख का जुर्माना, कानूनी मुकदमे, पंजीकरण रद्द करना, 7 दिन में ऑडिट, और 10 दिन में जांच रिपोर्ट शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वह जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय का रुख करेंगी। उनकी इस पहल ने स्थानीय निवासियों में उम्मीद जगाई है। हैदरगढ़ के निवासी अजय वर्मा ने कहा, “प्रिया जी ने हमारी आवाज को बुलंद किया है। अब प्रशासन को जवाब देना होगा।”बाराबंकी में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ महीनों में देवा शरीफ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदने की शिकायतें और अन्य अनियमितताएं सामने आई थीं। डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने तब कार्रवाई का आश्वासन दिया था, लेकिन हालात जस के तस हैं। प्रिया सिंह ने कहा, “मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मरीजों की जान सुरक्षित रहे और कानून का पालन हो। प्रशासन को अब जागना होगा।
No comments:
Post a Comment