प्राइम भारत न्यूज़
न्यूज़ डेस्क : ऋषभ सैनी
बिना रजिस्ट्रेशन चल रहे 10 ई-रिक्शा और 7 ओवरलोड वाहन सीज, उठे सवाल — कहीं मैटाडोर-टैम्पो वसूली की तर्ज़ पर ठेकेदारी तलाशने की कवायद तो नहीं?
बाराबंकी।
जनपद में सड़क पर यातायात व्यवस्था को सुचारु बनाए रखने के नाम पर एक बार फिर परिवहन विभाग और ट्रैफिक पुलिस ने ई-रिक्शा चालकों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। सोमवार को सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी की अगुवाई में पुलिस व ट्रैफिक पुलिस ने बिना रजिस्ट्रेशन चल रहे 10 ई-रिक्शा और 7 ओवरलोड वाहनों को सीज कर दिया।
हालांकि इस कार्रवाई के पीछे असली मकसद जाम की समस्या बताया जा रहा है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसके पीछे कहीं न कहीं वसूली का खेल फिर से नया ठेका ढूंढने की कोशिश तो नहीं?
जनपद में खुला ई-रिक्शा संगठन का नया कार्यालय भी बना चर्चा का विषय
रविवार को ही जनपद में एक नए ई-रिक्शा चालक-मालिक संगठन के कार्यालय का उद्घाटन हुआ, जहां करीब एक सैकड़ा ई-रिक्शा चालकों को ₹300 प्रति माह सदस्यता शुल्क लेकर आई कार्ड वितरित किए गए। साथ ही ई-रिक्शा चलाते समय आई कार्ड पहनने के निर्देश भी जारी कर दिए गए।
अब सवाल उठता है कि अगर ई-रिक्शा चालक ही यातायात व्यवस्था बिगाड़ रहे हैं तो फिर सदस्यता शुल्क वसूली और आई कार्ड देकर उनसे वसूली का रास्ता क्यों खोला जा रहा है?
क्या फिर सक्रिय हो रही है ‘हफ्ता वसूली यूनियन’?
सूत्रों की मानें तो जनपद में पहले से ही डग्गामार वाहनों — मैटाडोर, बस, टैम्पो से हफ्ता वसूली करने वाली एक दबंग यूनियन का अस्तित्व वर्षों से है। यह यूनियन जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से वसूली का बड़ा सिंडिकेट चला रही है। अब जब ई-रिक्शा से वसूली की कोशिश पहले दबंगई से असफल रही, तो अब नियम-कायदे की आड़ में नए तरीके से वसूली के लिए संगठित कवायद की जा रही है।
ई-रिक्शा चालकों की माने तो नई बनी यूनियन ₹300 प्रति रिक्शा सदस्यता शुल्क और आई कार्ड के नाम पर महीने भर में लाखों की वसूली करेगी। वर्तमान में लगभग एक सैकड़ा रिक्शा चालकों से ही ₹30,000 से अधिक की रकम जमा हो चुकी है।
अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले समय में हजार रिक्शों से महीने का ₹3 लाख तक वसूला जा सकेगा। जाहिर है इतनी मोटी रकम पर जिम्मेदारों और जनप्रतिनिधियों की निगाह न लगे, यह कैसे मुमकिन है?
डग्गामार वाहनों पर कार्रवाई क्यों नहीं?
विचारणीय सवाल यह भी है कि लखनऊ और आसपास के जनपदों से बड़ी संख्या में डग्गामार वाहन बिना किसी रोक-टोक के बाराबंकी में धड़ल्ले से आ-जा रहे हैं। उन पर कार्रवाई नहीं होती। इसका एक कारण ये माना जा रहा है कि उन बसों और टैम्पों के पीछे रसूखदार और जिम्मेदारों की मिलीभगत होती है, जिनसे पंगा लेना आसान नहीं।
अभियान की तेजी के पीछे आखिर वजह क्या?
सड़क किनारे लगने वाले ठेले, पटरी दुकानदार और अनधिकृत कब्जों पर कोई कार्रवाई न कर ई-रिक्शा चालकों पर सख्ती दिखाना कहीं न कहीं सवाल खड़े करता है। क्योंकि जानकारी के अनुसार इन ठेलों व फुटपाथ कब्जेदारों से भी एक निश्चित राशि हफ्ता वसूली के रूप में जाती है, जिसमें कुछ जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदारों की हिस्सेदारी होती है।
लर्निंग लाइसेंस कैम्प की पुरानी कहानी भी आई चर्चा में
पुरानी घटनाओं की बात करें तो जब जिले में नए उपनिरीक्षकों की तैनाती हुई थी, तो निवर्तमान एसपी के एक फोन पर ही लर्निंग लाइसेंस के लिए कैम्प लगाकर हफ्ते भर में दर्जनों लाइसेंस बना दिए गए थे। लेकिन अब गरीब ई-रिक्शा चालकों के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा।
निष्कर्ष
ई-रिक्शा गरीब तबके का सहारा है। जब बस और टैम्पों के पीछे बड़े लोगों का हाथ हो और ई-रिक्शा चालक को ही हर बार निशाना बनाया जाए तो सवाल उठना लाजमी है। अभियान के पीछे छिपे उद्देश्यों की परतें खुलेंगी या नहीं — यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
प्राइम भारत न्यूज़ इस पूरे मामले पर लगातार अपनी पैनी नजर बनाए हुए है और जनता की आवाज को यूं ही मुखर करता रहेगा।
न्यूज़ डेस्क : ऋषभ सैनी