Sunday, 20 July 2025

मौत के सौदागर बने डॉक्टर? मामूली बीमारी में ऑपरेशन और फिर मौत, आस्था हॉस्पिटल पर फिर उठे सवाल"


   प्राइम भारत न्यूज 

न्यूज डेस्क _ ऋषभ सैनी 


गले की तकलीफ में ऑपरेशन क्यों?', 'क्यों बिगड़ी हालत?', 'कब तक चलता रहेगा आस्था हॉस्पिटल का ये खौफनाक खेल?'


बाराबंकी। आस्था हॉस्पिटल — एक नाम, जो अब लोगों के लिए इलाज से ज़्यादा डर का पर्याय बन चुका है। इसी अस्पताल में रविवार को फिर एक दर्दनाक और संदिग्ध मौत हुई। मृतक युवक का नाम गुफरान था, जिसे शनिवार को मामूली गले और नाक की दिक्कत के चलते भर्ती किया गया था।

परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों ने हालात को बिना गंभीरता से समझे, सीधे ऑपरेशन की सलाह दी — और फिर वही हुआ जिसका डर था। ऑपरेशन के बाद गुफरान की तबीयत बिगड़ती चली गई, और रविवार दोपहर उसकी मौत हो गई।

गम और गुस्से से भरे परिजनों ने अस्पताल में हंगामा किया। परिजनों का कहना है कि गुफरान की हालत पहले से बिल्कुल सामान्य थी, लेकिन आस्था हॉस्पिटल ने उसे एक ‘कमाई के केस’ की तरह ट्रीट किया, नतीजा – मौत।

सूचना मिलते ही नगर कोतवाली प्रभारी अस्पताल पहुंचे और परिवार को कार्रवाई का भरोसा देकर मामला शांत कराया, लेकिन सवाल जस का तस है — क्या इस बार भी मौत की ये कहानी सिर्फ 'कार्रवाई के आश्वासन' में ही दफन हो जाएगी?

गौरतलब है कि ये कोई पहली घटना नहीं है। आस्था हॉस्पिटल पहले भी दर्जनों बार लापरवाही, फर्जीवाड़े और संदिग्ध इलाज के मामलों में घिर चुका है। लेकिन हर बार किसी अदृश्य 'प्रशासनिक छतरी' ने इसे बचा लिया।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल की प्रशासन में गहरी पकड़ है, इसलिए चाहे जितनी भी बड़ी लापरवाही हो, जांच या सज़ा की नौबत नहीं आती।

अब सवाल सिर्फ गुफरान की मौत का नहीं, बल्कि उस पूरे सिस्टम का है जो मौत के बाद भी चुप है।आख़िर कब तक आस्था हॉस्पिटल का ये ‘मौत का धंधा’ यूं ही चलता रहेगा?

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